Khuda Shayari
हर ज़र्रा चमकता है अनवर-ए-इलाही से,
हर ज़र्रा चमकता है अनवर-ए-इलाही से,
हर सांस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है।
वो पहले सा कहीं मुझको कोई मंज़र नहीं लगता,
यहाँ लोगों को देखो अब खुदा का डर नहीं लगता।
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न था तो खुदा था न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने मैं न होता तो क्या होता।
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सौदागरी नहीं ये इबादत खुदा की है,
ऐ बे-खबर जीजा की तमन्ना भी छोढ़ दे।
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तेरा करम तो आम है दुनिया के वास्ते,
मैं कितना ले सका ये मुकद्दर की बात है।
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मिट जाए गुनाहों का तसवुर ही जहाँ से,
अगर हो जाये यकीन के खुदा देख रहा है।
एक मुद्दत के बाद हमने ये जाना ऐ खुदा,
इश्क तेरी ज़ात से सच्चा है बाकी सब अफ़साने।
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हवा खिलाफ थी लेकिन चिराग भी खूब जला,
खुदा भी अपने होने का क्या क्या सबूत देता है।
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मोहब्बत कर सकते हो तो खुदा से करो,
मिटटी के खिलौनों से कभी वफ़ा नहीं मिलती।
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लाख ढूंढें गौहर-ए-मक़सूद मिल सकता नहीं,
हुक्म गर तेरा न हो पत्ता भी हिल सकता नहीं।
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खुदा को भूल गए लोग फ़िक्र-ए-रोज़ी में,
तलाश रिजक की है राजिक का ख्याल नहीं।
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करम जब आला-ए-नबी का शरीक होता है,
बिगढ़ बिगढ़ कर हर काम ठीक होता है।
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अपना तो आशिकी का किस्सा-ए-मुख़्तसर है,
हम जा मिले खुदा से दिलबर बदल- बदल कर।
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लौट आती है हर बार दुआ मेरी खाली,
जाने कितनी ऊंचाई पर खुदा रहता है।
हम मुतमईन है उस की राजा के बगैर भी,
हर काम चल रहा है खुदा के बगैर भी।
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सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का,
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है।
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मोहब्बत की आजमाइश दे दे कर, थक गया हूँ ऐ खुदा,
किस्मत मे कोई ऐसा लिख दे, जो मौत तक वफा करे।
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सुनकर ज़माने की बातें तू अपनी अदा मत बदल
यकीं रख अपने खुदा पर यूँ बार बार खुदा मत बदल।
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हैरान हूँ तेरा इबादत में झुका सर देखकर,
ऐसा भी क्या हुआ जो खुदा याद आ गया।
वो पहले सा कहीं, मुझको कोई मंज़र नहीं लगता,
यहाँ लोगों को देखो, अब ख़ुदा का डर नहीं लगता।
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मुझे खुदा के इन्साफ पर उस दिन यकीन हो गया,
जब मैंने अमीर और गरीब का एक जैसा कफ़न देखा।
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कर लेता हूँ बर्दाश्त तेरा हर दर्द इसी आस के साथ,
की खुदा नूर भी बरसाता है, आज़माइशों के बाद।
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बंदगी हमने छोड़ दी ए फ़राज़,
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ।
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बाद मरने के मिली जन्नत ख़ुदा का शुक्र है,
Subahanallah
जवाब देंहटाएंShukriyaa
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